पृथ्वी के लिए तो रूको...
विजयशंकर चतुर्वेदी उस युवा हस्ताक्षर का नाम है जिसकी कलम से सहज, भोली और आत्मीय रचनाएँ इस तरह झरी हैं कि पढ़कर मन का बचपन लौट-लौट आता है। गाँव की अमराइयों से छनकर आती सौंधी बयार जैसा सुखद अहसास देती...
View Articleसंबंधीजन
मेरी आँखें हैं माँ जैसी हाथ पिता जैसे चेहरा-मोहरा मिलता होगा जरूर कुटुंब के किसी आदमी से हो सकता है मिलता हो दुनिया के पहले आदमी से मेरे उठने बैठने का ढंग बोलने-बतियाने में हो उन्हीं में से किसी एक का रंग
View Articleबाबा की खिड़की से
बाबा की खिड़की से हवा चली आती है दरख्तों के चुंबन ले रात-बिरात पहचान में आती हैं ध्वनियाँ मिल जाती है आहट आनेवाले तूफान की अंधेरे- उजाले का साथी शुक्र तारा दिखाई देता है यहाँ से भटकती आहें आती हैं खिड़की...
View Articleएलबम
यह अचकचाई हुई तस्वीर है मेरे माता-पिता की किस्सा है कि इसे देख दादा बिगड़े थे बहुत यह रही मेरी झुर्रीदार नानी मुझे गोद में लिए खेल रहा हूँ मैं नानी के चेहरे की परतों से फौजी वर्दी में यह नाना हैं मेरे
View Articleबीड़ी सुलगाते पिता
खेत नहीं थी पिता की छाती फिर भी वहाँ थी एक साबुत दरार बिलकुल खेत की तरह पिता की आँखें देखना चाहती थीं हरियाली सावन नहीं था घर के आसपास पिता होना चाहते थे पुजारी खाली नहीं था दुनिया का कोई मंदिर पिता ने...
View Articleमाँ की नींद
किताब से उचट रहा है मेरा मन और नींद में है माँ। पिता तो सो जाते हैं बिस्तर पर गिरते ही, लेकिन बहुत देर तक उसकुरपुसकुर करती रहती है वह जैसे कि बहुत भारी हो गई हो उसकी नींद से लंबी रात।
View Articleदेवता हैं तैंतीस करोड़
बहुत दिनों से देवता हैं तैंतीस करोड़ उनके हिस्से का खाना-पीना नहीं घटता वे नहीं उलझते किसी अक्षांश-देशांतर में वे बुद्घि के ढेर इंद्रियाँ झकाझक उनकी सर्दी-खाँसी से परे ट्रेन से कटकर नहीं मरते रहते हैं...
View Articleचंद आदिम रूप
बाढ़ में फँसने पर वैसे ही बिदकते हैं पशु जैसे ईसा से करोड़ साल पहले। ठीक वैसे ही चौकन्ना होता है हिरन शेर की आहट पाकर...
View Articleआती थीं ऐसी चिट्ठियाँ
आती थीं ऐसी चिट्ठियाँ जिनमें बाद समाचार होते थे सुखद अपनी कुशलता की कामना करते हुए होती थीं हमारी कुशलता की कामनाएँ....
View Articleकदम आते हैं
कदम आते हैं घिसटते हुए लटपटाते हुए कदम आते हैं कदम आते हैं बूटदार खड़ाऊदार कदम आते हैं...
View Articleबारिश में स्त्री
बारिश है या घना जंगल बाँस का उस पार एक स्त्री बहुत धुँधली मैदान के दूसरे सिरे पर झोपड़ी जैसे समंदर के बीच कोई टापू....
View Articleजनहित याचिका
न्यायाधीश, न्याय की भव्य-दिव्य कुर्सी पर बैठकर तुम करते हो फैसला संसार के छल-छद्म का दमकता है चेहरा तुम्हारा सत्य की आभा से। देते हो व्यवस्था इस धर्मनिरपेक्ष देश में...
View Articleनौकरी पाने की उम्र
जिनकी चली जाती है नौकरी पाने की उम्र उनके आवेदन पत्र पड़े रह जाते हैं दफ्तरों में तांत्रिक की अँगूठी भी ग्रहों में नहीं कर पाती फेरबदल नहीं आता बरसोंबरस कहीं से कोई जवाब...
View Articleदुनिया अभी जीने लायक है
मैं सोचता था पानी उतना ही साफ पिलाया जाएगा जितना होता है झरनों का चिकित्सक बिलकुल ऐसी दवा देंगे जैसे माँ के दूध में तुलसी का रस मैं जहर खाने जाऊँगा....
View Articleमिट्टी के लोंदों का शहर
अंतरिक्ष में बसी इंद्र नगरी नहीं न ही पुराणों में वर्णित कोई ग्राम बनाया गया इसे मिट्टी के लोंदों से राजा का किला नहीं यह नगर है बिना परकोटे का.....
View Articleकपास के पौधे
कपास के ये नन्हें पौधे क्यारीदार जैसे असंख्य लोग बैठ गए हों छतरियाँ खोलकर पौधों को नहीं पता उनके किसान ने कर ली है आत्महत्या...
View Articleसमय गुजरना है बहुत
बहुत गुजरना है समय दसों दिशाओं को रहना है अभी यथावत खनिज और तेल भरी धरती घूमती रहनी है बहुत दिनों तक वनस्पतियों में बची रहनी हैं औषधियाँ ...
View Articleवजह नहीं थी उसके जीने की
पहला तीखा बहुत खाता था इसलिए मर गया दूसरा मर गया भात खाते-खाते तीसरा मरा कि दारू की थी उसे लत चौथा नौकरी की तलाश में मारा गया पाँचवें को मारा प्रेमिका की बेवफाई ने .....
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