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Channel: विजयशंकर की कविताएँ
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संबंधीजन

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मेरी आँखें हैं माँ जैसी हाथ पिता जैसे चेहरा-मोहरा मिलता होगा जरूर कुटुंब के किसी आदमी से हो सकता है मिलता हो दुनिया के पहले आदमी से मेरे उठने बैठने का ढंग बोलने-बतियाने में हो उन्हीं में से किसी एक का रंग

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