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Channel: विजयशंकर की कविताएँ
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दुनिया अभी जीने लायक है

मैं सोचता था पानी उतना ही साफ पिलाया जाएगा जितना होता है झरनों का चिकित्सक बिलकुल ऐसी दवा देंगे जैसे माँ के दूध में तुलसी का रस मैं जहर खाने जाऊँगा....

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मिट्टी के लोंदों का शहर

अंतरिक्ष में बसी इंद्र नगरी नहीं न ही पुराणों में वर्णित कोई ग्राम बनाया गया इसे मिट्टी के लोंदों से राजा का किला नहीं यह नगर है बिना परकोटे का.....

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कपास के पौधे

कपास के ये नन्हें पौधे क्यारीदार जैसे असंख्य लोग बैठ गए हों छतरियाँ खोलकर पौधों को नहीं पता उनके किसान ने कर ली है आत्महत्या...

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समय गुजरना है बहुत

बहुत गुजरना है समय दसों दिशाओं को रहना है अभी यथावत खनिज और तेल भरी धरती घूमती रहनी है बहुत दिनों तक वनस्पतियों में बची रहनी हैं औषधियाँ ...

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वजह नहीं थी उसके जीने की

पहला तीखा बहुत खाता था इसलिए मर गया दूसरा मर गया भात खाते-खाते तीसरा मरा कि दारू की थी उसे लत चौथा नौकरी की तलाश में मारा गया पाँचवें को मारा प्रेमिका की बेवफाई ने .....

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आखिर कब तक

गाँठ से छूट रहा है समय हम भी छूट रहे हैं सफर में

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चेहरे थे तो दाढ़ियाँ थीं

चेहरे थे तो दाढ़ियाँ थीं बूढ़े मुस्कुराते थे मूछों में हर युग की तरह इनमें से कुछ जाना चाहते थे बैकुंठ कुछ बहुओं से तंग़ थे चिड़चिड़े कुछ बेटों से खिन्न पर बच्चे खेलते थे इनकी दाढ़ी से और डरते नहीं थे ....

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खिड़की

बाबा की खिड़की से हवा चली आती है दरख्तों के चुंबन ले रात-बिरात पहचान में आती हैं ध्वनियाँ मिल जाती है आहट आनेवाले तूफान की अंधेरे- उजाले का साथी शुक्रतारा दिखाई देता है यहाँ से

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किसके नाम है वसीयत

झाँझ बजती है तो बजे मँजीरे खड़कते हैं तो खड़कते रहें लोग करते रहें रामधुन पंडित करता रहे गीता पाठ मेरे सिरहाने नहीं, मैं ऐसे नहीं जाऊँगा। आखिर तक बनाए रखूँगा भरम कि किसके नाम है वसीयत किस कोठरी में गड़ी...

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प्रेम हमारा

तुम वे फूल चढ़ा सकती थीं मंदिर में या खोंस सकती थीं जूड़े में मगर रख आईं समंदर किनारे रेत पर मेरा नाम खोदकर....

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सिर्फ एक बार

मुझे आने दो हँसते हुए अपने घर एक बार मैं पहुँचना चाहता हूँ तुम्हारी खिलखिलाहट के ठीक-ठीक करीब जहाँ तुम मौजूद हो पूरे घरेलूपन के साथ...

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चाँदनी की रश्मियों से चित्रित छायाएँ

प्रेम कई तरह से आपको छूता है, स्पर्श करता है. आपकी साँसों को महका देता है। और यह सब इतने महीन और नायाब तरीकों से होता है कि कई बार आप उसे समझ नहीं पाते। यह एक तरह का जादू है। यह कभी भी, कहीं भी फूट...

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