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Channel: विजयशंकर की कविताएँ
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चेहरे थे तो दाढ़ियाँ थीं

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चेहरे थे तो दाढ़ियाँ थीं बूढ़े मुस्कुराते थे मूछों में हर युग की तरह इनमें से कुछ जाना चाहते थे बैकुंठ कुछ बहुओं से तंग़ थे चिड़चिड़े कुछ बेटों से खिन्न पर बच्चे खेलते थे इनकी दाढ़ी से और डरते नहीं थे ....

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